न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
सुशील कुमार सिंह
नीति आयोग के हिसाब से देश में कम लागत वाले स्वास्थ्य बीमा की बहुत जरूरत है। तभी सब लोग स्वास्थ्य बीमा का लाभ उठा सकेंगे या उसके दायरे में आ सकेंगे। इसके अलावा स्वास्थ्य बीमा की मौजूदा योजनाओं में फर्क और उनमें दोहराव के कारण भी बहुत से लोग स्वास्थ्य बीमा से महरूम हैं।
फिलहाल हालत यह है कि पूरे देश में लगभग 42 करोड़ लोगों के पास किसी तरह का स्वास्थ्य बीमा नहीं है। यह संख्या देश की कुल आबादी की लगभग तीस प्रतिशत है। आयोग के मुताबिक अगर भारत को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य हासिल करना है तो कम प्रीमियम वाली बीमा योजनाएं बाजार में लानी होंगी।
सच्चाई यह है कि स्वास्थ्य पर सरकार की तरफ से होने वाले कम खर्च के कारण सरकारी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता और उनका स्तर माकूल नहीं हैं। देश के स्वास्थ्य बीमा को लेकर तैयार की गई नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं की दशा ही ज्यादातर लोगों को महंगे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर कर देती है।
केंद्र की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से आयुष्मान भारत या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना आर्थिक रूप से आबादी के पचास फीसदी कमजोर हिस्से को अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में बीमा कवर मुहैया कराती है। संख्या के लिहाज से ऐसे लोग करीब 70 करोड़ हैं। यह योजना सितंबर 2018 में लॉन्च की गई थी। बाकी आबादी में लगभग बीस फीसदी अथवा करीब 25 करोड़ लोगों को सामाजिक स्वास्थ्य बीमा और निजी स्वैच्छिक स्वास्थ्य बीमा में कवर किया जाता है। लेकिन बाकी के करीब तीस फीसदी लोग किसी भी स्वास्थ्य बीमा के दायरे में नहीं आते।
इतना ही नहीं, आयोग का मानना है कि आयुष्मान भारत योजना मौजूदा कवरेज अंतराल और योजनाओं के बीच दोहराव के चलते जमीनी स्तर पर ज्यादा आबादी तक नहीं पहुंच पा रही है। आयोग की इस रिपोर्ट में आरोग्य संजीवनी पर एक अच्छी योजना या सुधार लाने का सुझाव दिया गया है। यह योजना ऐसी होनी चाहिए जो सभी बीमारियों का जल्द से जल्द कवरेज दिला सके।
जैसे आयोग का मानना है कि आरोग्य संजीवनी को एक तिहाई की भी आधी कीमत पर दिया जाना चाहिए। फिलहाल इसकी कीमत बारह हजार रुपए है। यह उन परिवारों पर लागू होती है जिनमें चार सदस्य हैं। आयोग के सुझावन का अर्थ यह हुआ कि इस योजना का कवरेज महज दो हजार रुपए में दिया जाए। इसके साथ ही, आयोग मानता है कि सबसे पहले, सरकार को मजबूत नियामक तंत्र के जरिये ग्राहकों में स्वास्थ्य बीमा के प्रति भरोसा बढ़ाना चाहिए।
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