बॉस्टन, अमेरिका से सुधांशु मिश्र
चुनाव हो चुके हैं और अगर कोई ‘राजनीतिक सुनामी’ नहीं आई तो उम्मीद है कि जो बायडन 20 जनवरी की दोपहर 12 बजे अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बन जाएंगे। आशंका इसलिए है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने अब तक न हार मानी है न वे चुनाव में धांधली के ऊलजलूल आरोपों से बाज आ रहे हैं। यों ट्रम्प खेमे के कानूनी तरकश लगभग खाली हो चुके हैं और उनकी आस बस सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है जहां उनके कार्यकाल में नियुक्त तीन जजों के कारण इस समय अनुदारवादी रुझान वाले जजों का बहुमत है। ध्यान रहे, नौ सदस्यीय अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में सभी फैसले बहुमत से होते हैं और वहां किसी भी मसले के सिर्फ संवैधानिक पहलुओं की समीक्षा की जाती है।
चार दिन पहले इलेक्टोरल कॉलेज में भी बायडन को जीत हासिल हुई। सोमवार को हुई इस वोटिंग में बायडन को 306 और ट्रम्प को 232 वोट मिले। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्टोरल वोट होते हैं और इसमें बहुमत हासिल करने के लिए 270 के समर्थन की जरूरत होती है। इस जीत की औपचारिक घोषणा 6 जनवरी को सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स मिल कर करेंगे।
मगर जैसे-जैसे ट्रम्प के राजनैतिक प्रहार चुकते जा रहे हैं, बहुत से लोगों में यह चिंता बढ़ती जा रही है कि उनकी बेकरारी उनके साथ कहीं रिपब्लिकन पार्टी और अमेरिकी प्रजातंत्र को गहरे खतरे में न डाल दे। देश की 34 निचली अदालतें वोटर पंजीकरण या वोटों की गिनती को लेकर धांधली संबंधी उनके आरोपों को खारिज कर चुकी हैं। दिलचस्प यह है कि इन अदालतों में अधिकांश जज खुद ट्रम्प ने नियुक्त किए थे। साफ है कि ट्रम्प की शिकायतों में कोई कानूनी दम नहीं था। उनकी शिकायतें एक पराजित नेता का प्रलाप लग रही हैं। और तो और, जार्जिया प्रांत के गवर्नर और ट्रम्प के प्रिय ब्रायन केम्प भी ट्रम्प के खेमे से निकल चुके हैं और उन्होंने भी अपने प्रांत में बायडन की जीत की औपचारिक घोषणा कर दी है। चुनाव नतीजे पलटने के सारे दांव उलटे पड़ने और सत्ता हस्तांतरण का दिन करीब आने के कारण ट्रम्प खेमे की बौखलाहट बढ़ रही है।
नतीजों के शुरूआती दिनों में ट्रम्प कहते रहे कि अगर सभी ‘लीगल’ वोटों की गिनती की जाए तो वे ही जीतेंगे। परंतु जब सभी जगह वोट वैध पाए गए तो उन्होंने कहना शुरू किया कि डाक से आए वोटों को गिनती से बाहर रखा जाए। फिर जब अदालतों ने ऐसे मुकदमे भी खारिज कर दिए तो ट्रम्प ने रिपब्लिकन प्रांतों की विधायिकाओं से कहना शुरू किया कि वे अपने यहां पड़े वोटों को सत्यापित न करें और सीधे उन्हें, यानी ट्रम्प को विजयी घोषित कर दें।
कोई गवर्नर या विधायिका ऐसा गैर-संवैधानिक काम कर पाएंगे, यह असंभव है, लेकिन ट्रम्प जनमत की खुली अनदेखी की मांग करने तक उतर सकते हैं, यह उनकी बौखलाहट का सूचक है। यहीं से यह चिंता पैदा होती है कि न जाने उनका अगला कदम क्या होगा। ट्रम्प समर्थक सोशल मीडिया पर खुलेआम वोटों की अनदेखी करने की मांग कर रहे हैं। नतीजे सत्यापित करने के कारण जॉर्जिया के गवर्नर केम्प के लिए गाली-गलौच, धमकियां और मिशिगन की डेमोक्रेटिक गवर्नर ग्रेचन व्हिटमर के अपहरण की साजिश के भंडाफोड़ से पता चलता है कि ट्रम्प खेमा किस हद तक जाने को तैयार है। इस मामले में कोर्ट में दाखिल आरोप-पत्र से पता चलता है गवर्नर व्हिटमर का अपहरण उनके घर से होना था और ऐसा नहीं हो पाने की हालत में सचिवालय पर हमला करने के लिए तीन सौ लोगों का हथियाबंद दस्ता तैयार था। यह आरोप-पत्र संघीय जांच एजंसी एफबीआई ने दायर किया है। इस मामले में अब तक कोई सवा चार सौ षड़यंत्रकारी हिरासत में लिए जा चुके हैं।
चुनाव हारने के बावजूद पद पर बने रहने की ऐसी ओछी युक्तियों के पीछे ट्रम्प खेमे की रणनीति क्या हो सकती है? हाल में यह खबर आई कि ट्रम्प खेमा रिपब्लिकन शासित प्रांतों में पार्टी के जन-प्रतिनिधियों को उकसा रहा है कि बैटल-ग्राउंड प्रांतों में पड़े वोटों के बारे में संदेह का माहौल बना दिया जाए और वहां की विधायिका और वहां के रिपब्लिकन गवर्नर नतीजों को खारिज कर ट्रम्प को एकतरफा विजयी घोषित कर दें। ट्रम्प ऐसा करने को कह सकते हैं, इस पर संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने मिशिगन प्रांत के दो आला चुनाव अधिकारियों को पिछले सप्ताह ही व्हाइट हाऊस तलब किया था। उनके बीच क्या बात हुई, यह तो नहीं बताया गया, पर दोनों अधिकारियों ने पत्रकारों से कहा कि उनके मिशिगन प्रांत में वोटों की गिनती में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। दोनों अधिकारी ट्रम्प के समर्थकों में गिने जाते हैं और उनका ऐसा कहना साबित करता है कि वे ट्रम्प के दबाव में नहीं आए।
ट्रम्प खेमे ने यही हथकंडा पेंसिलवेनिया में भी अपनाया और अदालत में मुकदमा किया कि धांधली की वजह से नतीजे रद्द किए जाएं और ट्रम्प को विजयी घोषित किया जाए। इसी मुकदमे के बारे में ट्रम्प के वकील रूडी जूलियानी ने प्रेस कान्फ्रेंस की थी जिसका वह चित्र दुनिया भर में चर्चा का विषय रहा जिसमें उनके चेहरे पर खिजाब यानी हेअर-डाई बहते हुए दिख रहा था। जूलियानी मीडिया पर खूब बरसे थे। इसी प्रेस कान्फ्रेंस में शामिल सिडनी पॉवल नाम की एक महिला ने खुद को ट्रम्प चुनाव अभियान समिति का वकील बताया था। बाद में पता चला कि वह औरत न वकील थी और न ट्रम्प चुनाव अभियान समिति की सदस्य।
बहरहाल, पत्रकारों ने जब जूलियानी से सबूत मांगे तो वे बगलें झांकने लगे, हालांकि प्रेस कान्फ्रेंस में ट्रम्प-समर्थक मीडिया के लोग ही बुलाए गए थे। फर्जी वकील सिडनी पॉवल की वजह से ट्रम्प खेमे की खूब किरकिरी भी हुई क्योंकि उसने बिना कोई सबूत दिए आरोप लगाया कि वेनेजुएला से ट्रकों में भर कर वोट गणना केंद्रों पर पहुंचाए गए और वोट गिनने वाले कर्मचारियों से कहा गया कि वे नियम-कानून की चिंता न करें, सिर्फ बायडन को जिताएं, आदि। (आभार – समय की चर्चा)
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