न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
विनीत दीक्षित
नई दिल्ली। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की जिद को दरकिनार कर नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने को कांग्रेस आलाकमान का खासा साहसिक फैसला माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि आलाकमान की अगली ऐसी ही कार्रवाई राजस्थान में हो सकती है जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी नीतियों के आलोचक सचिन पायलट और उनके समर्थकों को कतई बर्दाश्त नहीं करना चाहते। मगर अब पार्टी खुद ही मान रही है कि पंजाब में कैप्टन और सिद्धू का विवाद पूरी तरह सुलझा नहीं है।
यह स्वीकारोक्ति हरीश रावत की तरफ से आई है जो पंजाब के विवाद को सुलझाने के लिए बनाई गई तीन नेताओं की कमेटी के मुखिया थे और पंजाब के प्रभारी भी हैं। एक टीवी चैनल से बातचीत में हरीश रावत ने कहा कि दोनों नेताओं के बीच कुछ मुद्दों को सुलझाया जाना अभी बाकी है। उनका कहना था कि पार्टी का पूरा ध्यान अब चुनावों पर है और उसे सिद्धू की आक्रामकता और अमरिंदर सिंह के अनुभव दोनों की आवश्यकता है।
रावत के मुताबिक स फैसले से यह न समझा जाए कि कांग्रेस बदल रही है। हम प्रतिभा को पहचान रहे हैं, पर मूल सिद्धांतों से समझौता नहीं कर रहे। उन्होंने कहा कि लोगों को कैप्टन पर विश्वास है। हम पंजाब में कैप्टन को आगे करके ही चुनाव में जाएंगे जबकि सिद्धू के हाथ पार्टी की कमान रहेगी।
उधर नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कैप्टन भारी दबाव में हैं। उनकी नाराजगी और मांग के बावजूद सिद्धू ने कैप्टन पर लगाए आरोपों के लिए कोई माफी नहीं मांगी। फिर भी मजबूरन कैप्टन को सिद्धू की तजपोशी वाले कार्यक्रम में जाना पड़ा और अपनी ही सरकार के खिलाफ उनकी बातें सुननी पड़ीं। सिद्धू ने कहा कि प्रदेश मुख्यालय में मंत्रियों को भी तीन घंटे का समय देना होगा। इसका मतलब हुआ कि सरकार को अब संगठन की सुननी होगी।
स्टेज पर सिद्धू व कैप्टन में कोई बात नहीं हुई। बोलने के लिए उठे तो सिद्धू ने कैप्टन की ओर देखा तक नहीं जबकि लाल सिंह व राजिंदर कौर भट्ठल के पांव छुए। भाषण में उन्होंने ड्रग्स से बेऔलाद हुए लोगों, गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी और राज्य में आंदोलन कर रहे अस्थायी अध्यापकों व डॉक्टरों के मुद्दे उठाए। हालत ऐसी हो गई मानों कोई विपक्षी नेता सरकार की पोल खोल रहा हो। बाद में अकाली नेता दलजीत चीमा ने भी चुटकी ली कि सिद्धू भूल गए कि पंजाब में सरकार तो उनकी ही है।
क्या इन बातों से यह मतलब निकाला जाए कि अब पंजाब में कांग्रेस का हिसाब सिद्धू ही देखेंगे? उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि इस सरकार के कामकाज के भरोसे पार्टी विधानसभा चुनावों में नहीं जाएगी, बल्कि आलाकमान ने जो अठारह मुद्दे बताए, उन्हें लेकर जनता के बीच जाएंगे। इससे तो साफ है कि कैप्टन और सिद्धू का विवाद खत्म नहीं होगा। इस चक्कर में राज्य के अनेक मंत्रियों की मुश्किलें बढ़नी तय है। सिद्धू के बुलावे पर वे नहीं गए तो चुनाव में उनका टिकट फंस सकता है। दूसरी तरफ, सवाल यह भी है कि कांग्रेस आलाकमान क्या यह मानता है कि अपनी ही सरकार की खिंचाई करके पार्टी चुनाव जीत सकती है?
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