न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
राकेश आनंद
रूस और यूक्रेन के बीच बढते विवाद ने दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है।
अमेरिका का दावा तो यहां तक है कि एक दो दिन में रूस यूक्रेन पर हमला करने ही वाला है। हालांकि रूस इस बात से साफ इंकार कर रहा है तो वहीं य़ूक्रेन भी इस बात को सीधे-सीधे नकार रहा है। लेकिन सवाल ये उठता है कि अगर युद्ध होता है तो दुनिया के देश दो हिस्सों में बंट जाएंगे। एक जो रूस के साथ होंगे और दूसरा जो अमेरिका यानी नाटो देशों के साथ होगें।
मुश्किलें तो उन राष्ट्रों की है जो रूस और अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों के साथ बराबर का संबंध रखना चाहते हैं। भारत भी ऐसे ही राष्ट्रों में शामिल है।
अब तक भारत की जो नीति रही है उसमें तटस्थ बने रहने की कोशिश है लेकिन भारत की तटस्थता बहुत दिनों तक बनी नहीं रह सकेगी और भारत को किसी ने किसी एक खेमे के साथ जुड़ना ही होगा।
रूस भारत का एक परखा हुआ और विश्वसनीय साथी रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में अमेरिका भी भारत का सच्चा साथी बनने की कोशिश की है और वह इसमें काफी हद तक कामयाब भी रहा है।
आज भारत अमेरिका के संबंध काफी घनिष्ट हैं।
ओबामा शासन के दौरान भारत और अमेरिका के बीच जो संबंध बने उसे आज 16 सालों के दौरान अमेरिका में आने वाली सरकारों ने भी प्रगाढता दी है।
यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि भले ही अमेरिका के साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ हुए हों लेकिन न तो भारत ने रूस का और न ही रूस ने भारत का साथ छोड़ा है। यही नहीं भारत–चीन संबंधों में आई दरार के वावजूद रूस ने भले ही खुल कर नहीं लेकिन भारत का साथ जरूर दिया है।
डोकलाम विवाद के दौरान रूस ने पर्दे के पीछे से चीन को सयंमित करने की भी कोशिश की थी। ये सबको पता है। ऐसे में आज भारत भी उसी नीति पर चल रहा है जो रूस ने अपनाई थी। लेकन डोकलाम एक विवाद था विश्वयुद्ध जैसी परिस्थितियां नहीं बनी थी इसलिए रूस ने उसे संभाल लिया। लेकिन अब स्थितियां उलट है ।
यूक्रेन विवाद विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहा है और रूस की भी उम्मीदें है कि भारत उसका साथ दें तो वहीं अमेरिका सुपर पावर है, ऐसे में वो सीध-सीधे तौर पर भारत को समर्थन देने के लिए तो नहीं कहेगा। तो भारत को सोचना है क्योंकि अमेरिका में भारत का बहुत बड़ा स्टेक लगा हुआ है।
भारत ने पिछले 20 वर्षों में अमेरिका से रिश्ते सुधारने के लिए जो जतन किए हैं, भारत उस पर भी पानी नहीं फेर सकता है। क्योंकि आज नहीं तो कल चीन से निपटने में भारत को अमेरिका की जरूरत तो पड़नी ही है।
भारत चाहे जितना भी आत्मनिर्भर हो जाए लेकिन अगले 50 वर्षों तक भारत अकेले चीन से निपट नहीं सकता है साथ ही रूस-चीन की दोस्ती भी भारत के लिए के एक गंभीर चिंता का विषय है। यही कारण है कि भारत अमेरिका के करीब होता जा रहा है।
यूक्रेन मामले पर चीन ने खुलकर रूस का हाथ थामा है ऐसे में अगर भविष्य में कभी भारत-चीन विवाद बढता है तो रूस सीधे-सीधे भारत का हाथ तो नहीं ही थामेगा। ये बात तो स्प्ष्ट है। यहां ये बात भी और भी साफ हो जाती है है कि भारत को भविष्य में अमेरिका की बहुत जरूरत पड़ेगी भले ही रूस भारत का विरोध न करे लेकिन चीन को काबू में करना उसके बस की भी बात नहीं है।
आज भारत की कूटनीति फिलहाल इस बात पर टिकी है कि जहां तक हो सके इस मामले में तटस्थ रहा जाए। हांलाकि अंदर ही अंदर चीन के मामले में भारत रूस से साथ की गारंटी भी चाहता है और अमेरिका को छोड़ना भी नहीं चाहता है। भले ही रूस हमारा बहुत पुराना साथी रहा हो लेकिन चीन के मामले में ये तो तय है कि जिस तरह का साथ अमेरिका हमें देगा उस तरह का साथ रूस से नहीं मिलेगा।
भारत को अपनी संप्रभुता की रक्षा करनी है तो एक हद तक रूस ज्यादा बेहतर साथी अमेरिका साबित हो सकता है। अब जब पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्ते खराब हो चुके हैं तो अमेरिका को भी दुनिया में अपनी सत्ता कायम रखने के लिए दक्षिण एशिया में भारत का साथ देना ही होगा ।
आज रूस भले ही भारत का अच्छा दोस्त हो लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था चाहे अनचाहे अमेरिका से जुड़ी है।
लाखों भारतीय अमेरिका में गुजर बसर कर रहे हैं। कई बड़ी बड़ी कंपनियों में भारतीयों के बहुत स्टेक लगे हुए हैं साथ ही भारत को अगर प्रगति करनी है तो अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ अच्छे संबंध बहुत कीमती साबित होंगे ।
वहीं रूस हमारा तबतक ही साथ देगा जबतक उसकी अर्थव्यवस्था को भारत से फायदा हो रहा है। आज भारत और रूस को सिर्फ और सिर्फ सामरिक रिश्ते ही जोड़े हुए है।
रूस हमारा पुराना विश्वसनीय पड़ौसी भी है ऐसे में उसे पूरी तरह से नकारा भी जा सकता है। लेकिन ये भी एक सच है कि आज भारत और रूस के संबंधों के बीच चीन आ खड़ा हुआ है। जाहिर है भारत के लिए ये कठिन चुनौती भरा समय है और उसकी कोशिश यही है कि वह अमेरिका के रूस के साथ साथ रूस को भी साधे।
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