न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

महेंद्र पाण्डेय

पेरिस में पिछले हफ्ते लैंगिक समानता के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन के बीच वर्ल्डवाइड वेब फाउंडेशन के तहत फेसबुक, गूगल, ट्विटर और टिकटॉक एक मंच पर आये और उन्होंने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये, जिसके अनुसार ये सभी अपने प्लेटफॉर्म पर महिला उत्पीड़न रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस घोषणा का स्वागत अनेक पूर्व राष्ट्राध्यक्षों, राजनीतिकों और प्रसिद्ध हस्तियों ने किया है। इन्टरनेट के इस दौर में यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अपनी इस प्रतिबद्धता पर आगे बढ़ते हैं तो निश्चित तौर पर महिलाओं की दुनिया आसान हो जायेगी।

यह अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन संयुक्त राष्ट्र महिला और फ्रांस और मेक्सिको की सरकारों द्वारा लैंगिक समानता को लेकर आयोजित किया गया जिसकी तैयारियां पिछले दो वर्षों से चल रही थीं। इसे लैंगिक समानता से संबंधित सबसे बृहद आयोजन करार दिया गया है। यह आयोजन एक ऐसे दौर में हो रहा है, जब कोविड19 ने महिलाओं को और लैंगिक समानता की उपलब्धियों को दशकों पीछे धकेल दिया है। इकनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में इन्टरनेट का उपयोग करने वाली कुल महिलाओं में से एक-तिहाई महिलायें ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। कम उम्र की महिलाओं में तो यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से भी अधिक है।

घोषणापत्र में कहा गया है कि महिलाओं की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए दो महत्वपूर्ण बिंदु हैं। पहला, सोशल मीडिया पर किसी कमेन्ट पर कौन प्रतिक्रिया दे सकता है इसका नियंत्रण कमेंट करने वाले के हाथ में हो और दूसरा सोशल मीडिया या इन्टरनेट प्लेटफॉर्म महिलाओं की शिकायतों को गंभीरता से लेकर उन पर तत्काल कार्यवाही करें। घोषणापत्र के अनुसार इन दोनों बिन्दुओं पर नए सिरे से काम किया जाएगा। फिलहाल लगभग सभी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर इस तरह की समस्याओं की स्पष्ट और प्रभावी रिपोर्टिंग और उसके निराकरण का अभाव है।

प्लान इन्टरनेशनल नामक संस्था ने दिसम्बर 2020 में 22 देशों की 14000 महिलाओं का सर्वेक्षण किया था। इनकी उम्र 15 वर्ष से 25 वर्ष के बीच थी। इस सर्वेक्षण के अनुसार ऑनलाइन प्रताड़ना से तंग आकर 20 प्रतिशत महिलाओं ने सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म पूरी तरह छोड़ दिए और 12 प्रतिशत महिलाओं ने इन्टरनेट पर काम करने का अंदाज बदल दिया। सर्वेक्षण के अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक महिलायें ऑनलाइन प्रताड़ना का शिकार बनीं। इस प्रताड़ना में अश्लील भाषा, यौन हिंसा की धमकी और शारीरिक अंगों की विवेचना भी शामिल है। संयुक्त राष्ट्र ने 2018 में ही सभी देशों को ऑनलाइन महिला उत्पीड़न रोकने के लिए सख्त क़ानून बनाने को कहा था, पर शायद ही किसी देश ने ऐसा क़ानून बनाया।

समाजशास्त्रियों के अनुसार महिलाओं की ऑनलाइन प्रताड़ना के कारण लैंगिक समानता के सारे प्रयास पिछड़ते जा रहे हैं। ऐसी हरकतें महिलाओं की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करती हैं और नतीजतन वे मानसिक तौर पर कमजोर होती जाती हैं। पश्चिमी देशों में ऑनलाइन प्रताड़ना के बाद महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का गहराई से अध्ययन किया गया है। जाहिर है, यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गंभीरता से इस समस्या का हल निकालने का प्रयास करते हैं, तब इस डिजिटल युग में महिलाओं का जीवन थोड़ा आसान हो जाएगा। (आभार  – समय की चर्चा )