आरस गंजू

आगामी 15 अक्टूबर को गिलिगत-बाल्तिस्तान की असेंबली के लिए वोट डाले जाएंगे। आप कह सकते हैं कि पाकिस्तान के अवैध कब्ज़े वाले इस इलाके को तीसरी बार कथित असेंबली चुनावों के ढकोसले का गवाह बनना है। पहले यह चुनाव 18 अगस्त को होना था, मगर कोरोना के चलते उसकी नई तारीख तय की गई।

  इन चुनावों की शुरूआत 12 नवंबर 2009 को हुई थी जब असेंबली का पहला चुनाव हुआ। पहले इसका नाम गिलगित-बल्तिस्तान लेजिस्लेटिव असेंबली हुआ करता था, लेकिन जून 2018 में इसे बदल कर गिलगित-बाल्तिस्तान असेंबली कर दिया गया। ऐसा कश्मीर व गिलगित-बल्तिस्तान मामलों के मंत्रालय के एक आदेश से हुआ। असल में, यह असेंबली कोई भी कानून बनाए, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को उसे वीटो करने का अधिकार है। यह काम उसी अधिकार के तहत हुआ।

  पाकिस्तान के चुनाव आयोग और एनएडीआरए यानी नेशनल डेटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक इस क्षेत्र में 618364 रजिस्टर्ड वोटर हैं डिनमें 329475 पुरुष और 288889 महिलाएं हैं। इन्हें 33 में से 24 साटों के लिए अपने प्रतिनिधि चुनने हैं। बाकी छह सीटें महिलाओं के लिए और तीन सीटें टेक्नोक्रेट के लिए रिजर्व हैं। असेंबली के तीन सदस्य गिलगित जिले से, तीन हुंज़ानगर, छह स्कर्दू, दो अस्तोर, चार दियामर, तीन ग़िज़र और तीन गंचे ज़िले से चुने जाने हैं। सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी अथवा गठबंधन को 17 सीटें चाहिए होंगी। पूरे गिलगित-बाल्तिस्तान की आबादी लगभग 12.5 लाख है। इनमें शिया सबसे ज्यादा 39.85 प्रतिशत हैं। फिर सुन्नी 30.05 प्रतिशत, इस्लाइली 24 प्रतिशत और नूरबख्शी 6.1 फीसदी हैं।

  पिछली असेंबली का पांच साल का कार्यकाल इस साल 24 जून को खत्म हुआ। तब तक यहां सत्ता में पीएमएल(एन) यानी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के हाफिज हफीज-उर-रहमान थे। असेंबली में उनकी पार्टी के बाइस सदस्य थे। उनके अलावा तहरीक-ए-जाफना के चार, मजलिस वहादात-ए-मुस्लिमीन के तीन, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का एक, पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ का एक, मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट का एक और बलवरस्तान नेशनल फ्रंट का एक सदस्य था। हाफिज हफीज-उर-रहमान के बाद यहां का प्रशासन इलाके के पूर्व डीआईजी मीर अफ़जल चला रहे हैं। उनकी नियुक्ति इमरान खान सरकार ने की है, लेकिन माना जा रहा है कि इस फैसले के पीछे पाकिस्तानी फौज का हाथ है। 

  कश्मीर के विशेषज्ञ इतिहासकार शफ़ाकत अली इंकलाबी

कहते हैं कि शुरू से ही ऐसा होता आया है कि इस्लामाबाद में जिस पार्टी की भी सरकार होती है, गिलगित-बाल्तिस्तान में भी उसी की हुकूमत हो जाती है। उनका आंकलन है कि इस चुनाव में पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी को बारह से चौदह सीटें मिलेंगी। इसी तरह पाकिस्तान पीपल्स पार्टी तीन या चार, पीएमएल(एन) दो या तीन सीटें जीतेगी। एक-दो सीटें राष्ट्रवादी ताकतों को जा सकती हैं।

  इंकलाबी कहते हैं कि बलवरिस्तान नेशनल फ्रंट के मुखिया नवाज खान नाजी जो ग़िज़र-1 सीट पर दो बार पहले भी जीत चुके हैं, इस बार भी जीतेंगे। नाजी अपने इलाके में खासे लोकप्रिय हैं क्योंकि वे पाकिस्तान सरकार की नीतियों के आलोचक हैं। असल में आईएसआई को भी इन नेशनलिस्टों की लोकप्रियता का अंदाजा है। इसीलिए ऐसे लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया है।

  स्थिति यह है कि गिलगिल-बाल्तिस्तान में दो सौ से ऊपर राष्ट्रवादी एक्टिविस्ट इस वक्त जेलों में बंद हैं। उन पर आतंकवाद और देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं। इन्हीं में बाबाजान भी हैं जिनकी अपीलों पर पिछले पांच साल से अदालतें ध्यान ही नहीं दे रहीं। आईएसआई तो गिलगित-बाल्तिस्तान के उन निर्वासित नेताओं के भी पीछे पड़ी है जिन्होंने अमेरिका, बेल्जियम, कनाडा या ऑस्ट्रिया में राजनीतिक शरण ले रखी है।  

  बलवरिस्तान नेशनल फ्रंट (हमीद ग्रुप) का अब्दुल हमीद खान ग़िज़र घाटी का रहने वाला है। पाकिस्तान सरकार का विरोध करते हुए वह 1999 में नेपाल गया। फिर ब्रसेल्स में रहते हुए उसने गिलगित-बाल्तिस्तान में पाकिस्तान सरकार की दमनात्मक नीतियों का पर्दाफाश किया। लेकिन आईएसआई ने चुपचाप उसे घेरे में लिया और किसी तरह फरवरी 2019 में उसे पाकिस्तान ले आई। अब उसे गिलगित-बाल्तिस्तान में रखा गया है और जब भी जरूरत होगी, अलगाववादियों के खिलाफ उसका इस्तेमाल किया जाएगा। हालात पर काबू पाने के लिए गिलगित-बाल्तिस्तान में कई राजनीतिक दलों पर पूरी तरह पाबंदी भी लगा दी गई है। ऐसे में कोई भी समझ सकता है कि चुनाव का क्या मतलब है।  (आभार – समय की चर्चा )