न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

महेंद्र पाण्डेय

कृषि सब्सिडी से किसी का भला नहीं होता। दुनिया भर में खेती पर जितनी भी सब्सिडी दी जा रही है उसमें से 90 प्रतिशत राशि पर्यावरण को बर्बाद कर रही है, लोगों के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डाल रही है, जैव विविधता का विनाश कर रही है और छोटे व बड़े किसानों के बीच की खाई को बढ़ा रही है। इस गुरुवार संयुक्त राष्ट्र में आयोजित खाद्य सम्बंधी महाधिवेशन से पहले एक रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है।

इस रिपोर्ट को फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाईजेशन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने मिल कर जारी किया है। पूरी दुनिया में कृषि कार्यों से सम्बंधित लगभग 540 अरब डॉलर की सब्सिडी हर साल दी जाती है। वैसे इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सब्सिडी की वास्तविक राशि इससे कहीं अधिक होगी। इसमें से 90 प्रतिशत जिन कामों के लिए इस्तेमाल की जा रही है, उससे मानव जाति का भला नहीं बल्कि नुकसान हो रहा है। यह लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रहा है, प्रकृति को नष्ट कर रहा है और छोटे किसानों, जिनमें बड़ी संख्या में महिलायें है, के बीच असमानता बढ़ा रहा है।

रिपोर्ट के हिसाब से यह लगभग पूरी सब्सिडी औद्योगिक खेती या फिर मांस व दूध उद्योग में जाती है जबकि ये सभी उद्योग बड़े पैमाने पर पर्यावरण के विनाश और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। अगर यह सब्सिडी इसी दर से बढ़ती रही तो अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह 118 ख़रब डॉलर प्रतिवर्ष तक पहुँच जायेगी। जाहिर है कि पर्यावरण के नुकसान और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का पैमाना भी बढ़ जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि औद्योगिक देशों में मांस और दूध उद्योग में सब्सिडी में भारी कटौती करने की जरूरत है, इसी तरह गरीब देशों को लोगों और पर्यावरण का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक उद्योग को दी जाने बाली सब्सिडी में बड़ी कटौती करनी पड़ेगी। रिपोर्ट के मुताबिक कृषि सब्सिडी पर यदि विस्तृत अध्ययन कर उसे पर्यावरण संरक्षण और जन-स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगाया जाए तो समाज को लाभ होगा। इससे गरीबी, भुखमरी और कुपोषण ख़त्म किया जा सकता है, तापमान वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है और पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सकता है। इससे फल और सब्जियों समेत पौष्टिक भोजन को बढ़ावा दिया जा सकता है और छोटे किसानों को विकास के रास्ते पर लाया जा सकता है।

कई अध्ययन बताते हैं कि वर्ष 2020 में कोरोना के चलते विश्वव्यापी लॉकडाउन के कारण वैश्विक खाद्यान्न श्रृंखला टूट गयी है और इसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। पिछले साल दुनिया भर में 80 करोड़ से अधिक आबादी अत्यधिक भुखमरी का शिकार हुई, तीन अरब आबादी को पौष्टिक भोजन नहीं मिला और दो अरब आबादी मोटापे का शिकार हो गयी। इस दौरान कुल कृषि उत्पादन का एक-तिहाई हिस्सा विभिन्न कारणों से बर्बाद भी हुआ। कृषि से सम्बंधित मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव और पर्यावरण विनाश का आर्थिक आकलन करने पर यह राशि लगभग बारह खरब डॉलर सालाना पहुँचती है, जोकि हर साल कृषि पर किये जाने वाले कुल खर्च से भी अधिक है।

फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाईजेशन के महानिदेशक क़ु दोंग्यु कहते हैं कि अब समय आ गया है जब दुनिया कृषि सब्सिडी पर गहन अध्ययन कर और इसे मानव जाति और पर्यावरण संरक्षण के लिए खर्च करे। इससे पोषण, उत्पादन, पर्यावरण और मानव जीवन बेहतर होगा। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के महानिदेशक अचिम स्टीनर के अनुसार कृषि सब्सिडी में ढांचागत परिवर्तन कर दुनिया के लगभग 50 करोड़ छोटे किसानों का जीवन बेहतर किया जा सकता है, इससे छोटे किसान भी औद्योगिक खेती का मुकाबला करने में सक्षम होंगे। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की जॉय किम ने कहा है कि फिलहाल कृषि पर्यावरण की सबसे बड़ा दुश्मन है और सब्सिडी के कारण पर्यावरण विनाश लगातार बढ़ रहा है। दुनिया में उत्सर्जित कुल ग्रीनहाउस गैसों में से एक-चौथाई से अधिक केवल कृषि से ही होता है।

दूसरी तरफ दुनिया के कुल जैव-विविधता के विनाश में से 70 प्रतिशत और कुल वनों की अवैध कटाई में से 80 प्रतिशत कृषि के कारण है। जॉय किम के हिसाब से दुनिया भर के देशों ने जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सालाना 100 अरब डॉलर खर्च करने का लक्ष्य रखा है, जबकि वनों को बचाने के लिए पांच अरब डॉलर प्रतिवर्ष खर्च का लक्ष्य है, जबकि वर्ष 2013 से 2018 के बीच दुनिया में कृषि सब्सिडी का सालाना औसत 540 अरब डॉलर रहा और इसमें से 87 प्रतिशत से अधिक राशि ऐसे कामों में लगाई जाती है जिससे पर्यावरण का नुकसान होता है और मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है। जाहिर है कि दुनिया जितना पर्यावरण बचाने पर खर्च करती है, उससे कई गुना अधिक राशि जाने-अनजाने पर्यावरण विनाश पर खर्च करती है।

कुछ देश अब कृषि सब्सिडी के सन्दर्भ में सजग हो रहे हैं। चीन ने रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के उत्पादन में दी जाने वाली सब्सिडी में भारी कटौती की हैं। हमारे देश में आंध्रप्रदेश सरकार ने जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग योजना शुरू की है, जिससे बिना उत्पादन प्रभावित किये ही कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरक के उपयोग को रोका जा सके। यूनाइटेड किंगडम ने कुल कृषि सब्सिडी में से तीन अरब डॉलर को पर्यावरण संरक्षण के कामों में निवेश करने का ऐलान किया है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि पर्यावरण विनाश का सही आकलन किया जाए तो प्रतिवर्ष इसका आर्थिक मूल्य 4 से 6 ख़रब डॉलर के बीच होगा, और इसमें से एक बड़े हिस्से का कारण दुनिया भर में कृषि को बढ़ावा देने के नाम पर दी जाने वाली सब्सिडी है। अगस्त 2021 में वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में बड़े पैमाने पर भूमि के विनाश में कृषि सब्सिडी का बड़ा योगदान है, और सब्सिडी को कम करके इस व्यापक विनाश को रोका जा सकता है। (आभार – समय की चर्चा)