न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
सुशील कुमार सिंह
अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल के दाम इस गुरुवार 119 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंचे जो शुक्रवार को 110 से 112 डॉलर के बीच ऊपर-नीचे हो रहे थे। इससे समझा जा सकता है कि देश में तेल की कीमतों में किस हद तक बढ़ोत्तरी हो सकती है। माना जा रहा है कि ये कीमतें मौजूदा विधानसभा चुनावों के बाद तेजी से बढ़ेंगी।
एक तरह से रूस के यूक्रेन पर हमले से दुनिया भर में महंगाई की लहर पैदा होगी जिसके लिए भारत को भी तैयार रहना होगा। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर रूस का हमला ज्यादा खिंचा तो भारत को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता है। पिछले हफ्ते नोमुरा की रिपोर्ट में भी कहा गया कि इस युद्ध का प्रभाव एशिया में सबसे ज्यादा भारत पर पड़ेगा।
एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक अगर कच्चे तेल की कीमत 100 से 110 डॉलर के बीच रहती हैं तो पेट्रोल-डीजल 9 से 14 रुपये प्रति लीटर तक महंगे होंगे। सरकार उत्पाद शुल्क में कटौती करके इसे बढ़ने से रोकती है, लेकिन उस हालत में सरकार को हर महीने लगभग 8000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा।
पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी तो माल ढुलाई का खर्च भी बढ़ेगा। इससे रोजमर्रा के इस्तेमाल के सामान के भाव बढ़ेंगे जो आम लोगों को सीधे प्रभावित करेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक इस सबसे खुदरा महंगाई दर जो पहले से ही सात महीने के उच्च स्तर पर है वह और ऊपर जाएगी। रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत पर दूसरी तरह से भी असर पड़ेगा। यूरोप को दी जाने वाली सेवाएं इससे प्रभावित होंगी। रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण भारत से चाय और अन्य उत्पादों के निर्यात पर असर पड़ेगा।
जापान की रिसर्च कंपनी नोमुरा का कहना है कि भारत एक बड़ा तेल आयातक देश है इसलिए युद्ध लंबा खिंचने पर भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी। उसके मुताबिक तेल की कीमतों में हर 10 फीसदी की उछाल के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में लगभग 0.20 फीसदी की गिरावट आएगी। इसी तरह यहां थोक महंगाई में 1.20 फीसदी और खुदरा महंगाई दर में 0.40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो सकती है। कोयले की सप्लाई को लेकर भी सरकार पर दबाव बढ़ेगा। इन हालात को काबू में करने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पर होगी जिसे कई बड़े फैसले लेने होंगे। इनमें ब्य.जा दरों को बढ़ाना भी शामिल होगा।
भारत जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मोबाइल-लैपटॉप आदि के लिए भी दूसरे देशों से आयात पर निर्भर करता है। यह आयात अधिकतर चीन और दक्षिण कोरिया से होता जिसका भुगतान डॉलरों में किया जाता है। रुपये में अगर मौजूदा गिरावट जारी रही तो यह तमाम आयात महंगा हो जाएगा। यूक्रेन से भारत खाद्य तेल से लेकर खाद और न्यूक्लियर रिएक्टर तक खरीदता रहा है। साफ है कि इन चीजों की खरीद में भी उसे नुक्सान हो सकता है। यूक्रेन सूरजमुखी के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत में कुछ समय से खाने के तेल के दाम पहले से ही काफी ऊपर हैं।
यूक्रेन युद्ध ऑटोमोबाइल सेक्टर को भी प्रभावित करने वाला होगा। इसकी वजह यह है कि यूक्रेन सेमीकंडक्टर की खास धातु पेलेडियम और नियोन का उत्पादन करता है। साथ ही रूस प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा सप्लायर है। युद्ध के कारण जाहिर है कि इसकी कीमतें भी ऊपर जाएंगी।
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