न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

विनीत दीक्षित

नया रायपुर में मंत्रालय भवन के सामने थोड़ी दूरी पर लगभग दो महीने से किसानों का एक धरना चल रहा है। इस धरने के स्वरूप दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के एक साल से भी ज्यादा समय तक चले धरनों से मिलता जुलता है। इस धरने में भी लोग दिन-रात जमे हुए हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसा माहौल है। धरनास्थल पर ही उनका भोजन बनता और बंटता है और वे सोते हैं।

ये उन 27 गांव के लगभग 7000 किसान हैं। नया रायपुर बनाने के लिए इन्हीं गांवों की जमीनें ली गई थीं। इन किसानों की आठ मांगें हैं। इनमें किसानों के पुनर्वास, उनके रोजगार और संपूर्ण बसाहट के पट्टे की मांगें शामिल हैं। इन्हें देश के दूसरे किसान संगठनों का भी समर्थन मिल रहा है। वे कहते हैं कि नया रायपुर के विकास में सहयोग देने वाले गांवों के सभी प्रभावित किसानों को पुनर्स्थापन मिले, चाहे वे भूस्वामी हों या भूमिहीन। उनका आरोप है कि जमीन अधिग्रहण के समय राज्य सरकार ने जो वादा किया था, उसे पूरा नहीं किया गया है।

पिछले हफ्ते यह खबर आई थी कि इन आंदोलनकतारी किसानों की आठ में से छह मांगें राज्य की भूपेश बघेल सरकार ने मान ली हैं और बाकी दो मांगों पर सरकार कानूनी सलाह ले रही है। इस घोषणा के बाद भी किसानों ने आंदोलन समाप्त करने से इन्कार कर दिया। वे सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं।

इन आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधि पिछले हफ्ते दिल्ली भी आए। यहां उन्होंने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की और अपनी मांगे उनके सामने रखीं। उसी तरह इन लोगों ने अन्य किसान संगठनों के नेताओं से भी बात की और उन्हें अपने आंदोलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया।

इसी का नतीजा था कि भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि उत्तर प्रदेश का चुनाव समाप्त होने के बाद वे नया रायपुर के आंदोलनकारी किसानों के समर्थन के लिए छत्तीसगढ़ जाएंगे। खुद छत्तीसगढ़ में इन किसानों के लिए राजनीतिक समर्थन की कमी नही है। सत्ताधारी कांग्रेस उनके समर्थन का दम तो भरती है, लेकिन उनकी सभी मांगें मानने से कतराती है। भाजपा जो कि राज्य में विपक्ष में है, इस मामल में किसानों के साथ होंने की बात करती है, लेकिन वह भी ज्यादा कुछ इसलिए नहीं कह पाती कि इस समस्या की शुरूआत तब हुई थी जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी।

बहरहाल, आंदोलनकारी किसान नेताओं ने कहा है कि अगर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार हमारी मांगें नहीं मानती है तो हम आंदोलन तेज करेंगे। साथ ही अगली बार दूसरे राज्यों के चुनाव में जहां भी भूपेश बघेल जाएंगे वहां हम भी पहुंचेंगे और उनकी सरकार की वास्तविकता लोगों को बताएंगे।

इन किसानों की नाराजगी का एक कारण यह भी है कि 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी उन्होंने आंदोलन किया था। तब कांग्रेस ने उस आंदोलन का समर्थन किया था और किसान संगठनों से वादा किया था कि राज्य में अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो उनकी सभी मांगों को पूरा किया जाएगा। मगर अब राज्य सरकार ध्यान ही नहीं दे रही।

आठ में से छह मांगें मान लिए जाने को बी ये किसान नेता छलावा बताते हैं। उनके मुताबिक भाजपा सरकार के समय ही इन मुद्दों का निर्णय हो चुका था। जिन मांगों क वजह से आंदोलन इतने लंबे समय से चला आ रहा है वे तो मानी ही नहीं गईं। यह कहते हुए उन्होंने राज्य के कृषि मंत्री की आंदोलन खत्म करने की अपील ठुकरा दी।

नई राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति के प्रमुख रुपन लाल चंद्राकर कहते हैं कि उनकी वास्तविक मांगों की पिछली और मौजूदा दोनों सरकारों ने उपेक्षा की है। पहले भाजपा सरकार ने जिन मांगों पर सहमति दी थी उन्हीं को कांग्रेस सरकार भी मानने को तैयार है। उन्होंने कहा कि जब तक पूरी मांगों पर सहमति नहीं बनती तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगी।