न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
विनीत दीक्षित
दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है। सो, चीन की तरफ से किए जाने वाले वादे निर्धारित तरीके से और तय समय में पूरे हो जाएं तो अचंभा होना लाज़मी है। इसीलिए सबकी निगाहें पूर्वी लद्दाख पर लगी हैं कि चीन वहां तक वापस जाता है या नहीं जिसका उसने भरोसा दिया है। वैसे भी सेनाएं पीछे हटाने को लेकर जो सहमति दोनों देशों में बनी है उस पर कई सवाल सिर उठा रहे हैं।
यह सुन कर सबको राहत मिली कि चीन अपनी सेना पैंगोंग लेक के दोनों तरफ से पीछे हटाने को तैयार हो गया है। भारत-चीन में बनी ताजा सहमति के मुताबिक चीन पैंगोंग लेक के उत्तर में फिंगर चार से फिंगर आठ तक पीछे जाने को तयार हो गया है और लेक के दक्षिण में वह अपने टैंक उस ज़मीन से हटा लेगा जहां उसने अतिक्रमण किया था।
बदले में भारतीय सेना पैंगोंग लेक के उत्तर में फिंगर चार के ऊंचाई वाले स्थानों से नीचे उतर कर फिंगर तीन के बेस पर, झील के पानी के पास बनी, धान सिंह थापा पोस्ट पर आ जाएगी। इसी तरह हमारी सेना को पैंगोंग लेक के दक्षिण में, रजांगला के मैदान के पास, कैलाश हाइट्स से नीचे उतरना होगा। इन हाइट्स से नीचे उतरने का मतलब है कि चीन की मोलदोवो छावनी पर अब बेहतर निगरानी नहीं रखी जा सकेगी।
सहमति यह बनी है कि फिंगर तीन से फिंगर आठ के बीच का मैदान खाली कर दिया जाएगा। एलएसी के भारतीय दावे के मुताबिक फिंगर आठ तक भारत की जमीन है और हमारी फौज 1962 के बाद से इस इलाके में पैट्रोलिंग करती आ रही है। लेकिन अब कहा जाएगा कि करती आ रही थी। अब वह फिंगर आठ तक गश्त नहीं कर पाएगी, क्योंकि फिंगर चार से फिंगर आठ तक की ज़मीन का दर्जा पहले जैसा नहीं रहा है। अब वह ‘नो मैन्ज लैंड’ में तब्दील हो गयी है।
इस खाली मैदान पर भारतीय फौज या चीनी फौज किस समय पैट्रोलिंग कर सकेगी, यह मसला अभी दोनों सेनाओं के स्थानीय कमांडरों की अगली मीटिंगों में तय होना है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में भारतीय सेना को फिंगर आठ तक पैट्रोलिंग पर निकलने से पहले चीन की सेना को सूचित करना पड़े और जब चीनी सेना पैट्रोलिंग पर निकले तो उसे भी भारतीय सेना को बताना पड़े। आगामी बातचीत इसी मुद्दे पर होगी। चीन की सेना फिंगर आठ तक वापस लौट रही है, यह बड़ी बात है। लेकिन भारतीय सेना का फिंगर तीन-चार और कैलाश हाइट्स से हटना देश के ज्यादातर रक्षा विशेषज्ञों के गले नहीं उतर रहा।
जानकार यह भी कहते हैं कि असल में पूर्वी लद्दाख में पिछले एक-डेढ़ महीने से दोनों सेनाओं के लगभग पचास प्रतिशत जवान पहले ही लौट चुके थे। उनके मुताबिक पैंगोंग लेक पर भारत और चीन के, यानी दोनों तरफ, एक से डेढ़ बटालियन के बराबर सैनिक तैनात थे। मगर जैसे-जैसे मौसम खराब होना शुरू हुआ, और जबरदस्त ठंड के चलते दोनों तरफ की हरकतें थमीं, तो चुपचाप थोड़े-थोड़े सैनिकों को निचले स्थानों पर भेजा जाने लगा। लद्दाख में तापमान माइनस चालीस डिग्री के भी नीचे चला गया था और 1962 के बाद शायद पहली बार भारत और चीन की सेनाएं रायफल रेंज में आ खड़ी हुई थीं। रायफल रेंज मतलब दोनों तरफ के सैनिकों के बीच की दूरी सिमट कर 175 मीटर या फिर उससे भी कम रह गई थी।
दोनों तरफ के टैंकों के बीच भी इतनी ही दूरी बची थी, जो कि बेहद खतरनाक स्थिति थी। ध्यान रहे, भारत और चीन की सेनाओं के पास दुनिया के बेहतरीन टैंक मौजूद हैं जो पूर्वी लद्दाख में अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर दिए गए थे। दूसरी आधुनिक मशीनरी के साथ ही इन भारी-भरकम टैंकों को भयावह सर्दी में, बिना हिले-डुले, एक ही जगह खड़ा नहीं रखा जा सकता था। इतने कम तापमान में लंबे समय तक निष्क्रिय खड़े रहने से इनके खराब होने का खतरा था। यह खतरा दोनों सेनाओं को था। अब ये टैंक पीछे जा रहे हैं। चीन ने सबसे पहले अपनी ये हैवी मशीनरी ही पीछे हटाई है, बल्कि बहुत तेजी से हटाई है। इसीलिए, लगता है कि पीछे हटने की सहमति के पीछे मौसम की भूमिका भी रही है।
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