न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

 भारत और चीन की सेनाएं लद्दाख में एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल से हटने को तैयार हो गई हैं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में कहा कि पैंगॉन्ग के उत्तर और दक्षिण वाले इलाके से सेनाएं पीछे हटाने पर समझौता हो गया है। उन्होंने दावा किया कि चीन के साथ बातचीत में हमने कुछ खोया नहीं है।

रक्षामंत्री ने कहा कि लद्दाख की ऊंची चोटियों पर हमारी सेनाएं मौजूद हैं, इसलिए हमारा प्रभुत्व बना हुआ है। उनके मुताबिक पिछले सितंबर से दोनों पक्षों में सैनिक व राजनयिक बातचीत जारी है। हमारा लक्ष्य एलएसी पर यथास्थिति बरकरार रखने की है। रक्षामंत्री ने कहा कि पिछले साल सीमा पर चीनी सेना के उठाए कदमों से भारत और चीन के संबंधों पर भी असर पड़ा है।

राजनाथ सिंह का कहना था कि चीन ने 1962 से लद्दाख के अंदर 38 हजार वर्ग किमी इलाके पर अनाधिकृत कब्जा कर रखा है। इसके अलावा पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर की 5180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी है। इस तरह चीन का भारत की करीब 43 हजार वर्ग किमी जमीन पर कब्जा है। चीन अरुणाचल प्रदेश की भी नौ हजार वर्ग किमी जमीन को अपना बताता है। लेकिन भारत ने इन दावों को कभी स्वीकार नहीं किया।

इस बीच चीन ने भी कहा है कि बुधवार को दोनों ओर से अग्रिम मोर्चों से सैनिकों की एकसाथ वापसी शुरू हो गई है। चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वू कियान ने कहा कि चीन और भारत के बीच हुई कमांडर लेवल की नौवें दौर की बातचीत में पीछे हटने पर सहमति बनी थी। इसी के तहत दोनों तरफ के सैनिकों को पैंगॉन्ग, हुनान और नॉर्थ कोस्ट से पीछे हटाना शुरू कर दिया है।

वैसे चीन और भारत की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में पिछले साल अप्रैल से ही आमने-सामने हैं। जून 2020 में गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे जबकि चीन ने अपने सैनिकों के हताहत होने की बात कभी कबूल नहीं की। इस बुधवार रूस की सामाचार एजेंसी तास ने दावा किया है कि 15 जून को गलवान घाटी झड़प में चीन के कम से कम 45 चीनी सैनिक मारे गए थे।