न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

महेंद्र पाण्डेय

हमारे देश का उत्तरी भाग इस साल मार्च से लगातार चरम गर्मी की चपेट में रहा और तापमान के नए रिकॉर्ड कायम होते रहे। मई महीने से यूरोप के कुछ देश और अमेरिका के कई हिस्से भी बढ़ते तापमान से त्रस्त हैं। इन सभी जगह तेज गर्मी आम जनजीवन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रही है।

यूरोपियन एनवायरनमेंटल एजेंसी के मुताबिक 1980 से 2000 के बीच यूरोप के 32 देशों में चरम गर्मी के कारण 27 से 70 अरब यूरो का नुकसान हुआ। इसके आगे के दो दशकों में यूरोप में चरम गर्मी की घटनाएं बढ़ी हैं और जाहिर है आर्थिक नुकसान भी अधिक होने लगा है। अकेले फ्रांस में वर्ष 2015 से 2020 के बीच चरम गर्मी के कारण 22 से 37 अरब यूरो का नुकसान हुआ। नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार यूरोप के देशों को 2003, 2010, 2015 और 2018 में अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा और इन वर्षों के दौरान यूरोप में जीडीपी में औसतन 0.3 से 0.5 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गयी थी। दक्षिणी यूरोपीय देशों में तो यह गिरावट 2 प्रतिशत तक पहुंची। अनुमान है कि वर्ष 2060 तक केवल अत्यधिक तापमान के कारण यूरोप की अर्थव्यवस्था को औसतन 10 प्रतिशत तक का नुकसान होगा।

आईएलओ यानी इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाईजेशन के मुताबिक यदि किसी कार्य क्षेत्र का तापमान लम्बे समय तक 34 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहे तो वहां काम करने वालों की कार्य क्षमता में 50 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। उसके हिसाब से केवल अत्यधिक गर्मी के कारण वर्ष 2030 तक दुनिया में मानव कार्य घंटों में 2 प्रतिशत की कमी होगी। यह समय 8 करोड़ पूर्णकालिक रोजगार के बराबर होगा और इससे 2.4 ख़रब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र के इन्टरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट के अनुसार तापमान वृद्धि के कारण दुनिया के अधिकतर हिस्सों में साल के 250 दिनों तक खुले में काम करना कठिन और खतरनाक हो जाएगा।

हमारे देश में इस वर्ष अत्यधिक गर्मी के कारण गेहूं की पैदावार में 15 प्रतिशत तक की कमी होने का अनुमान है, और माना जा रहा है कि शेष गेहूं की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। फ्रांस के कृषि मंत्रालय के अनुसार 2019 में गर्मी के कारण वहां मक्के के उत्पादन में 9 प्रतिशत और गेहूं के उत्पादन में 10 प्रतिशत तक कमी आई थी। इसी तरह अमेरिका में 2012 में भयानक गर्मी के कारण मक्के की पैदावार 12 प्रतिशत तक घट गई थी। यही नहीं, अत्यधिक गर्मी मवेशियों और दुग्ध उद्योग को भी प्रभावित करती है।

अमीर और मध्यम वर्ग तो एयरकंडीशनर से गर्मी को मात दे सकता है, पर गरीब इसकी सीधी मार झेलते हैं। गरीबों में भी महिलायें इससे अधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उनके जिम्मे ही पानी, जलावन लकड़ी, मवेशियों के चारे और खेतों की गुड़ाई का काम रहता है। गर्भवती महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी घातक असर करती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जब लम्बे समय तक औसत तापमान सामान्य से 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है तब समय से पहले प्रसव के या फिर मरे हुए शिशु के पैदा होने की घटनाएं 5 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं। यह अध्ययन सितम्बर 2020 में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ था जो 1990 के बाद से इस विषय पर प्रकाशित 70 शोधपत्रों पर आधारित था। कोलंबिया यूनिवर्सिटी स्थित कंसोर्टियम ऑन क्लाइमेट एंड हेल्थ एजुकेशन की निदेशक सेसिलिया सोरेंसें कहती हैं कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इसका कारण यह है कि इसका प्रभाव केवल गरीब महिलाओं तक सीमित है और इस विषय पर आंकड़े इकट्ठे नहीं किए जाते। वैसे भी ज्यादातर गरीब महिलायें अस्पतालों तक नहीं पहुँचतीं।

सेसिलिया सोरेंसें बताती हैं कि चरम तापमान गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत खतरनाक है। गरीब गर्भवती महिलायें पानी और मवेशियों के चारे के लिए लम्बी दूरी तय करती हैं, पर उनकी समस्या यहीं ख़त्म नहीं होती। भीषण गर्मी में भी उन्हें लकड़ी और दूसरे जैव-ईंधनों की मदद से खाना बनाना पड़ता है। इन ईंधनों से होने वाले प्रदूषण पर तो बहुत सारे शोध मौजूद हैं, पर 45-50 डिग्री सेल्सियस में चूल्हे के ताप को झेलती महिलाओं पर कोई अध्ययन नहीं किया जाता है।

विश्व मौसम संस्था के अनुसार 1970 से 2019 के बीच चरम मौसम के कारण दुनिया में 20 लाख मौतें दर्ज की गयी हैं, जिनमें से 10 प्रतिशत से अधिक का कारण अत्यधिक तापमान है। पिछले दशक के दौरान ऐसी कुल 185000 मौतों में से आधी से अधिक का कारण अत्यधिक गर्मी थी। यूरोपियन एनवायरनमेंटल एजेंसी के अनुसार यूरोप में 1980 से 2021 के बीच चरम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली कुल मौतों में से 90 प्रतिशत मौतों का कारण अत्यधिक गर्मी थी। चरम गर्मी के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का आकलन कठिन है, पर असामयिक मौतों, स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते बोझ, मानव कार्य दक्षता में कमी और कृषि के साथ कंस्ट्रक्शन परियोजनाओं पर इसका व्यापक असर पड़ता है।