न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की जीत के अलावा दूसरी सबसे बड़ी घटना कांग्रेस और वामदलों का धूल-धूसरित होना है। इनके वोट भाजपा और तृणमूल कांग्रेस में चले गए और यह दोनों पार्टियां एक भी सीट नहीं जीत पाईं।
पश्चिम बंगाल के 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में इन दोनों पार्टियों का कुल मत प्रतिशत (39.17) तृणमूल कांग्रेस (38.93) से अधिक था। तब यह दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ी थीं। सीपीएम को 30.08 प्रतिशत वोट मिले थे और कांग्रेस को 9.09 प्रतिशत। लेकिन दस वर्ष बाद ये दोनों पार्टियां मिल कर लड़ीं, फिर भी कुल आठ प्रतिशत वोट तक नहीं बटोर पाईं।
यानी पिछले दस वर्षों में इन दोनों पार्टियों ने 31 प्रतिशत वोट खोया। इस दौरान तृणमूल पार्टी के वोटों में नौ प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई तो भाजपा के वोटों में लगभग 30 प्रतिशत की। बीजेपी को मिला अतिरिक्त वोट सीपीएम की सीपीआई, आरएसपी, फॉरवर्ड ब्लॉक जैसी सहयोगी पार्टियों के अलावा निर्दलीयों से भी आया। इस बार सिर्फ एक निर्दलीय उम्मीदवार जीत पाया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वाम मोर्चे ने ममता बनर्जी को रोकने के लिए अपने अधिकतर वोट भाजपा के खेमें को ट्रांसफर कर दिए वहीं कांग्रेस के अधिकतर वोटर तृणमूल कांग्रेस की झोली में चले गए।
इससे तृणमूल कांग्रेस का मत प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 3 प्रतिशत और 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले 5 प्रतिशत अधिक बढ़ गया। वहीं, भाजपा को 2016 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 28 प्रतिशत वोट अधिक मिले हालांकि लोकसभा चुनाव के मुकाबले उसे 2 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ है।
दरअसल 2011 में वाम मोर्चे का जो पराभव शुरू हुआ था वह 2021 में लगभग पूर्ण हो गया। उस चुनाव में ममता बनर्जी ने वाम मोर्चे का लगातार 34 साल चला शासन खत्म किया था। सीपीएम को हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले केवल 7 प्रतिशत वोट कम मिले थे, लेकिन उसकी 136 सीटें घट गई थीं। उसे केवल 40 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। उसके अगले चुनाव में ममता बनर्जी ने 44.9 प्रतिशत वोट प्राप्त कर 211 सीटें जीती थीं। लेकिन सीपीएम का वोट प्रतिशत लगभग 11 प्रतिशत और गिर गया और वह केवल 26 सीट जीत पाई। उसके साथ सीटों का तालमेल करने की वजह से कांग्रेस का मत 3.3 प्रतिशत बढ़ गया था और उसे 44 सीटें मिली जो 2011 के मुकाबले दो अधिक थीं।
2019 के लोकसभा चुनाव में वाम मोर्चे ने कांग्रेस के साथ किसी तरह का तालमेल नहीं किया और वह 6.33 प्रतिशत वोट तो पाया, लेकिन एक भी सीट जीतने में असफल रहा। वहीं कांग्रेस ने 5.67 प्रतिशत वोट पाया और वह दो लोकसभा सीटों पर विजयी रही। लेकिन 2021 आते-आते दोनों पार्टियां एक साथ लड़ी लेकिन एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो पाई।
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