न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
विनीत दीक्षित
चीन ने भारत से लगने वाली सीमा के करीब कम से कम दो दर्जन गांव बसा दिए हैं। इन गांवों में जिन लोगों को रखा गया है उन्हें पीएलए यानी पीपल्स लिबरेशन आर्मी हर तरह की ट्रेनिंग और हथियार दे रही है।
ये गांव लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक फैले हैं और इनमें जिन्हें बसाया गया है वे खास कर तिब्बती लोग हैं।
उनकी ट्रेनिंग पीएलए के वरिष्ठ अफसरों की देखरेख में चल रही है। इस ट्रेनिंग का मकसद इन स्थानीय लोगों को ‘दुश्मन’ से मुकाबले के लिए तैयार करना है। जाहिर है कि उनके दुश्मन भारतीय सैनिक ही हो सकते हैं। साथ ही उन्हें तिब्बत के पठार के कठोर मौसम से मुकाबला करना भी सिखाया जा रहा है। इसके लिए जो भी सामान जरूरी है वह भी उन्हें मुहैया कराया जा रहा है।
असल में, ये तिब्बती लोग पहले छिटपुट तरीके से अलग-अलग रहते थे और मौसम के खराब होने पर इधर से उधर चले जाया करते थे।
अब इन्हें इकट्ठा कर इन गांवों में बसाया गया है। इन लोगों को बड़ी बारीकी से सिखाया जा रहा है कि हथकरघा, पशुपालन और खेती करते हुए भी कैसे उन्हें पीएलए के ‘सहायक’ अथवा ‘सैनिक’ की भूमिका निभानी है।
एक तरह से भारत की सीमा पर चीन अपनी एक नयी अघोषित और भाड़े की बटालियन तैयार कर रहा है।
ये चीन के बिना वर्दी के सैनिक होंगे, जिन्हें कभी भी भारत के विरुद्ध मोर्चा खोलने के लिए कहा जा सकता है। ये लोग किसी गुरिल्ला फोर्स की तरह होंगे। ठीक उसी तरह जैसे, एलओसी पर पाकिस्तान अपने ‘नॉन स्टेट प्लेयर्स’ का इस्तेमाल भारत को तंग करने में करता है।
क्या एलओसी जैसे हालात एलएसी पर भी होने वाले हैं? अगर ऐसा होता है तो यह काफी गंभीर स्थिति होगी।
कहा नहीं जा सकता कि चीन की इस तैयारी का वास्तविक मकसद क्या है। लेकिन अगर चीन के ये ‘नॉन स्टेट प्लेयर्स’ भारत के खिलाफ कोई हरकत करते हैं तो यह मामला भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर अब तक हुए किसी भी समझौते के दायरे से बाहर होगा।
सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से अब तक दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर जितने भी समझौते हुए हैं, उनमें साफ तौर पर कहा गया है कि जब तक मौजूदा एलएसी बाकायदा पक्की सीमा रेखा में तब्दील नहीं हो जाती, तब तक भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने आने की स्थिति में भी एक-दूसरे पर गोली नहीं चलाएंगे। इसीलिए पिछले साल गलवान घाटी वाली घटना में किसी भी तरफ से बंदूकों का इस्तेमाल नहीं हुआ था।
शायद अब चीन की रणनीति बदल रही है। अगर आने वाले समय में चीन की ओर से भारत के विरुद्ध इन नए बसाए गए गावों से कोई घातक गुरिल्ला कार्रवाई हुई तो भारतीय सैन्य अधिकारियों के लिए निर्णय लेना कठिन हो सकता है।
जिन दो दर्जन स्थानों पर पीएलए ने ये सैनिक प्रशिक्षण वाले गांव बसाए हैं उनमें एक नीति पास के उस पार चीन के नगरी की बुरंग काउंटी में तेज़ी से बन रहा है।
ऐसा ही एक गांव पूर्वी छोर पर अति संवेदनशील अरुणाचल सीमा पर खिबूतू से उस पार देखा जा सकता है।
यह एकदम नया गांव है जो न्यिंगची की ज़ायु काउंटी में बना है। यह गांव पूरी तरह आबाद है और चीन की एक सैनिक छावनी के बिलकुल नजदीक है।
सन् 1962 के युद्ध में चीन को खिबूतू की वेलौंग घाटी में सबसे बड़ी शिकस्त मिली थी। अनुमान है कि तब यहां चीन के करीब आठ हजार सैनिक मार गिराए गये थे। तभी से चीन इस इलाके पर नज़रें गड़ाए बैठा है, जो कि अरुणाचल प्रदेश का पूर्वी क्षेत्र है।
भारत की सीमा से लगने वाले चीन के कई इलाकों में रातोंरात ऐसे नए गांव बस गए हैं। इनमें नगरी की ज़ांदा, बुरंग और रोतुंग काउंटी, शिंगस्ते की यादोंग काउंटी, शेन्नॉन की कुओना काउंटी और न्यिंगची की नांग, मडॉग और ज़ायु काउंटी शामिल हैं।
एक अहम बात यह है की नगरी की गार काउंटी में चीन का 14700 फीट ऊंचाई पर भारत के सबसे नजदीक बनाया गया आधुनिकतम हवाईअड्डा भी है।
इस हवाईअड्डे पर हाल ही में चीन ने अपने जे-17 लड़ाकू विमान तैनात कर दिये हैं। एक हफ्ते पहले चीनी वायुसेना ने पूर्वी लढक में एक छोटा सैनिक अभ्यास भी किया। उस अभ्यास के लिए इसी नगरी हवाईअड्डे से कई उड़ानें भरी गयीं।
यह सब ऐसे हालात में हो रहा है जब चीन ने अपनी सन् 1962 या कहें कि सन् 1959 वाली सीमा पर लगभग 90 प्रतिशत तक घुसपैठ कर ली है।
रक्षा विशेषज्ञों के हिसाब से चीन एलएसी पर कई जगह 20 से 120 किलोमीटर तक घुसपैठ कर चुका है। इन कब्जे वाले स्थानों में वह अपने सैन्य ठिकानों को कंक्रीट के ढांचों से पक्का बनाने में लगा है। और इसी नाकेबंदी के पीछे वाले इलाकों में ये नए गांव बसाये गए हैं।
अरुणाचल प्रदेश के बेहद संवेदनशील क्षेत्र खिबुतू से एलएसी के पार नए बसे इस गांव को देखा जा सकता है। यह गांव न्यिंगची ज़िले की ज़ायु काउंटी में बनाया गया है जो पूरी तरह आबाद हो चुका है और पीएलए की छावनी इससे थोड़ी ही दूर है।
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