नई दिल्ली। कृषि सुधार कानून जितने विवादास्पद हैं उससे कहीं अधिक विवादित उन्हें बनाने की प्रक्रिया रही है। राज्यसभा में विपक्षी दलों द्वारा मत विभाजन की मांग को ठुकरा कर जिस तरह हंगामे के बीच सिर्फ ध्वनि मत से उन्हें पास कर दिया गया, वह संसदीय परंपराओं के पतन का एक बड़ा उदाहरण है। यह काम उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह की सदारत में हुआ जो स्वयं को गांधी, जेपी और लोहिया का अनुयायी बताते नहीं थकते।

  विपक्ष का दावा था कि अकाली दल सहित कई एनडीए घटक इन विधेयकों के खिलाफ थे और चूंकि सरकार को हार दिख रही थी इसलिए मत विभाजन कराया ही नहीं गया। वहीं सरकार का दावा था कि बीजू जनता दल, एआईएडीएमके और वाईएसआर कांग्रेस के साथ की वजह से उसकी जीत सुनिश्चित थी। और इसीलिए विपक्ष ने हंगामा किया।
  उस दिन दोपहर एक बजे राज्यसभा का समय खत्म हो गया तो सरकार ने इसे बढ़ा कर कृषि विधेयकों को पारित करने की मांग की। विपक्ष इसके खिलाफ था। उसका कहना था कि बाकी कार्रवाई अगले दिन की जानी चाहिए। अपनी मांग लेकर कई विपक्षी सदस्य वेल में चले गए। उन्होंने कागज फाड़े, नारे लगाए, यहां तक कि माइक तोड़ने की कोशिश की गई। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह को मार्शलों ने जबरदस्ती बाहर निकाला। तृणमूल संसदीय पार्टी के नेता डेरेक ओ ब्रायन को धक्कामुक्की में चोट भी आई। इस सब पर सभापति वेंकैया नायडू ने आठ विपक्षी सांसदों को बाकी सत्र के लिए निलंबित कर दिया। इसके विरोध में संपूर्ण विपक्ष ने राज्यसभा की कार्यवाही का शेष सत्र के लिए बहिष्कार कर दिया। मजबूर होकर सरकार को सत्र आठ दिन पहले स्थगित करना पड़ा।

  निलंबित हुए सांसद संसदीय परिसर में स्थित गांधी प्रतिमा के नीचे धरने पर बैठ गए। अगले दिन सुबह उपसभापति हरिवंश उनके लिए चाय लेकर आए जिसे स्वीकार करने से निलंबित सांसदों ने इन्कार कर दिया। लेकिन हरिवंश के इस ‘गांधीवादी कदम’ का प्रधानमंत्री सहित पूरे सत्ता पक्ष ने जबरदस्त स्वागत किया। यही नहीं, हरिवंश ने राष्ट्रपति को पत्र लिख उन्हें अपनी पीड़ा से अवगत कराया।  साथ ही वे एक दिन के उपवास पर भी बैठे।
  हरिवंश एक पत्रकार रहे हैं। खुद को जेपी के गांव सिताब दियारा का बताते हैं। लेकिन उनका घर इस गांव के उस हिस्से में पड़ता है जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में है, बिहार में नहीं। जेपी के शिष्य रहे चंद्रशेखर की उनसे नज़दीकियां सिताब दियारा की वजह से ही हुईं। चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने के बाद हरिवंश को अपना मीडिया सलाहकार भी नियुक्त किया। बाद में नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू के टिकट पर राज्यसभा भेजा और वे उपसभापति चुने गए। (courtesy – समय की चर्चा)