न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

विनीत दीक्षित

जब से चीन ने अपनी संसद यानी नेशनल पीपल्स कांग्रेस में अपनी सीमाओं के संबंध में एक नया कानून पास किया है, तब से भारत-चीन सीमा विवाद में एक नया और खतरनाक आयाम जुड़ गया है। संसद से कानून पास करने के साथ ही चीन ने अपनी सेना के लिए यह निर्देश भी जारी किया है कि आगामी पहली जनवरी से वह जिन भी सीमाई स्थानों पर तैनात है वहां चीन के स्वामित्व वाली भूमि की रक्षा करे। यह पूरा प्रकरण हमारे लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि ऐसे कई स्थान हैं जहां पीपल्स रिपब्लिक आर्मी अपनी हदों का उल्लंघन कर चुकी है और भारत चाहता है कि इस पर बातचीत हो और वह पीछे जाए।

साफ है कि चीन की सीमा निर्धारित करने वाला यह नया कानून सामरिक दृष्टि से भारत का नया सरदर्द बनने वाला है। इस नए चीनी कानून का अर्थ यह है कि लद्दाख में कई मोर्चों पर एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को अनदेखा करते हुए चीन की सेना जितनी भी आगे आकर जम गई है, नये साल से चीन उसी को अपनी सीमा मान लेगा। इस हिसाब से पैंगोंग झील के किनारे और देपसंग पठार पर अभी जहां पीएलए की चौकी है, वह दिसंबर के बाद चीन का इलाका कहलाएगा और यही भारत-चीन की नई सीमा रेखा हो जाएगी।

भारत इस स्थिति को कैसे स्वीकार सकता है? लेकिन दोनों देशों के सैनिक कमांडरों के बीच अब जब भी अगली यानी चौदहवें दौर की बातचीत होगी तो चीनी पक्ष के पास कहने को उनका यह नया कानून भी होगा। पूरी आशंका है कि चीनी सैन्य कमांडर उस बातचीत में कहेंगे कि 1 जनवरी 2022 से चीन का नया नक्शा यह है और अब हम कोई भी बातचीत इसी के आधार पर करेंगे।

हमारे विदेश मंत्रालय ने इस बारे में जो बयान जारी किया उसमें भी इस आशंका को रेखांकित किया गया है। इस बयान के मुताबिक चीन का यह नया कानून उसकी नई चाल है जो भारत-चीन मैत्री की दिशा में हो रहे अनेक प्रयासों पर असर डालेगी।

हैरत की बात यह भी है कि चीन के सीमा संरक्षण संबंधी इस नए कानून में पीएलए और उसके अधीनस्थ लोगों को चीनी सीमा की सुरक्षा के लिए हथियारों के बेझिझक इस्तेमाल की इजाज़त दी गयी है। असल में, सन् 1962 के युद्ध के बाद से अब तक भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने को लेकर यह एक स्थायी सहमति रही है कि जब भारतीय सेना या पीएलए की पेट्रोलिंग के दौरान अगर दोनों सेनाओं का आमना सामना हो जाए तो कोई गोली नहीं चलाएगा।

चीन के साथ लगने वाली भारतीय सीमा की लंबाई 3,488 किलोमीटर है। चीनी संसद से पास हुए कानून के बाद भारतीय सीमा से लगने वाले तिब्बती इलाकों के छोटे छोटे गांवों में पीएलए की देखरेख में स्थानीय लोगों को ‘बाहरी आक्रमण से बचाव’ के नाम पर हथियारों से लैस किया जाएगा। यही नहीं, पूरी एलएसी पर चीनी सेना को हर मौसम में हर समय कूच के लिए तैयार रहना पड़ेगा।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ के अनुसार चीन की सीमा इक्कीस देशों से लगती है। इनमें से नौ देशों के साथ चीन के सीमा समझौते हो चुके हैं। बाकी बारह देशों के साथ उसकी बातचीत चल रही है जिनमें भारत और भूटान भी हैं, जिनके साथ चीन का सीमा विवाद है।

भारतीय सेना और आईटीबीपी के सूत्रों का कहना है कि एलएसी पर कई साल से चीन पूरी खामोशी के साथ अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। धीरे-धीरे सीमा के करीब वह नई बस्तियां बसाने में लगा है जहां स्थानीय तिब्बतियों को पक्के मकान बना कर दिए जा रहे हैं। इसके बदले इन  लोगों को पीएलए के स्थानीय कमांडरों का आदेश मानना पड़ेगा। चीन से ही संचालित एक वेबसाइट का अनुमान है कि चीन ने एलएसी के आसपास ऐसे लगभग छह सौ गांव बसा दिए हैं जिनमें शहरों जैसी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।

अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश का एलएसी वाला इलाका लगभग एक समान है जहां पहाड़ों के बीच वादियों से गुज़र कर ही आया जाया जा सकता है। यहां पीएलए को पहाड़ी दर्रों के मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है। दूसरी तरफ, सिक्किम और लद्दाख की जमीनी हकीकत लगभग एक सी है। इन दोनों जगहों पर तिब्बत का पठार भारतीय सीमा से लगता है और इसी का लाभ उठा कर पीएलए ने लद्दाख में कई जगह घुसपैठ कर रखी है।

अब जबकि एक बार फिर सर्दियां आ चुकी हैं और भारत-चीन सीमा के एक बड़े हिस्से में सब कुछ बर्फ में ढंकना शुरू हो गया है, एलएसी के दोनों तरफ हजारों सैनिकों का जमावड़ा बरकरार है। जाहिर है कि लगातार दूसरे साल हजारों भारतीय जवानों को अगले कई महीने बर्फ में गुजारने होंगे।

स्थित यह है कि पिछले साल गलवान के खूनी हादसे के बाद से लद्दाख में भारतीय सेना की गश्त नहीं के बराबर हुई है। अब जबकि पहली जनवरी से चीन का यह नया कानून लागू होगा, कहा नहीं जा सकता कि दोनों तरफ के सौनिक कमांडरों की अगली बातचीत कब होगी। यह भी कहना मुश्किल है कि चीनी कमांडरों का अब क्या रवैया रहेगा। इस बारे में केवल अटकलें ही लगाई जा सकती हैं।